Thursday 8 February 2018

3 films

3 films :-

Glass -


             यह शॉर्ट फिल्म Bert Haanstra ने बनाई है। उनकी इस फिल्म मे कांच के साधन कैसे बनाए जाते है वह    बताया है। फिल्म कि शुरवात में कांच के गोले यहाँ- वहाँ से होते हुये दिखाई देते है। साथ मे फिल्म  के अंदर एक रोमांचक सी धून है। जिसे देखने वाला बोर ना हो जाये।
               इस फिल्म में एक के बाद एक सीन्स को जोड़ा गया है । जैसे की वहां के लोग, लोहे के पाइप के सहारे कांच की भट्टी में से कांच के रस को निकालकर पाइप में हवा भरते- भरते  उसे गोल आकर देते हैं । फिर उसे एक साचे में डालकर उसमे जोर जोर से हवा भरकर उसे पाइप के सहारे गोल गोल घुमाते है और कांच के रस को उस साचे का आकर आ जाता है । फिर सभी लोग अपने अपने हिसाब से उसे आकार देते है । यह सबकुछ एक साथ, एक के बाद एक आदमी को, आकर देते हुए, बनाते हुए दिखाया गया । फिर उसके बाद  मशीनद्वारा  बोतलों को बनाया जा रहा था । जैसे ही मशीन को फ्रेम में  लाया गया तो एक नयी music चालु हो गई । यह  music फिल्म देखने वाले का ध्यान  खींच लेती हैं |  
             शुरुवात मे इन्सान, कांच कि चीजों को बना राहा था लेकिन जब बोतल, मशीन द्वारा बना जाने पर दोनो कि काम करणे कि तुलना नज़र आई।  लेकिन जब मशीन द्वारा हुई गलती के लिये इन्सान को हि आगे आना पडा। इन्सान द्वारा बनाई गई चीजें काफी आकर्षक थी, क्योंकी उसमे अलग अलग रंग कि, अलग अलग आकार कि चीजों को बनाया था। मशीन द्वारा बनाई गई बोतल हम हमारी रोज कि जिंदगी देखतें है। लेकिन अलग अलग आकार, अलग अलग design कि चीजें हमे सिर्फ सुपर मार्केट या फिर शॉपिंग मॉल मे नजर आते है, जो कि काफी मेहंगा होता है। कहने का तात्पर्य यह हे कि, इन्सान द्वारा बनाई गई चीजें अच्छी-आकर्षक- टिकाऊ होती है।
फिल्म कि music, फिल्म कि शुरुवात, फिल्म कि फ्रेमिंग अच्छी थी। क्योंकी जिस प्रकार शुट किया गया था, वह बढिया था।
फिल्म में, कोई बडासा जार बना राहा है, कोई ट्रॉफी, कोई ग्लास। सभी लोग अपना काम डटकर कर रहे थे। इस फिल्म का एक फायदा कि जो कभी कांच कि फॅक्टरी ना गया हो या फिर कांच के उपकरण कैसे बनाये जाते है, वह अगर कोई जानता ना हो, तो वह घर बैठे देख सकता है।

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Umbrella -


             यह फिल्म काफी भावुक है। इस फिल्म के कुंदन रॉय और प्रियशंकर घोष ने निर्देशित किया है। इस फिल्म से यह मालूम होता हैं कि, हर इन्सान को दुसरे इन्सान प्रति आदर होना चाहिये। चाहे वो अमीर हो या फिर गरीब, दोनो को एक दुसरे का सम्मान करना चाहिये।
बात करें फिल्म कि तो फिल्म में फ्रेमिंग अच्छी थी। फिल्म कि जब शुरुवात होती है, तब उस जमीन पर उगे घास का drawing और जमीन पर दिखायें हुये घास के पानी के बिंदु का mixture, वो कमाल का था। फिल्म में दोनो पात्र भी एक दुसरे से भिन्न थे, उनकी भाषा अलग थी।
           सच बताऊं, तो अगर हम हमारी जिंदगी मे देखें तो ऐसे कई लोग हमारे आसपास होते है। चाहें वो चाय कि टपरी पर काम करने वाला लडका हो, या किसी छोटेसे हॉटेल- ढाबा पर काम करने वाले लडके हो। यह सब बचपन का गला घोंटकर काम करने आ जातें है। अपने घर से काफी दुर, माँ-बाप से जुदा होकर बचपन में ही बडे हो जातें है। उनकी एक गलती पर हम उन्हें चिल्लाते है, उनके नजदीक आने पर उनका स्पर्श ना हो इसीलिए दो कदम पिछे हटतें है। ना हम उनका दुःख- दर्द समझ पातें हैं और ना हम उनकी मदत करते है। बस इस फिल्म को देखने पर आपके अंदर जो इन्सानियत दबी हुई हैं, वो जाग उठेगी।

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पहाड़न -


इस Documentary फिल्म को जितेंदर कुमार रघुवंशी ने बनाया है।
              जंगल, नदी, पहाड यह सब प्रकृती की अनोखी देन है। हम जब इन्हे एक साथ देखतें है तो दुनिया का सबसे सुंदर नजारा देखने मिलता है। साथ में देखने मिलती है वहां कि सशक्त नारी। हैरान करने वाली बात यह कि, यहां कि महिलाए पुरुषों से अधिक काम करती है, आत्मनिर्भर है। पेड पर चढ़ना, डालिया तोडना, जो पुरुषों के काम है, आदि सभी काम यह महिलाए करती हैं।
                 हिमाचल प्रदेश में पहाडों पर बसी हुई यह महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक काम करती राहती है। पेड पर यह ऐसे चढती है, मानो कोई गिलहरी ( squirrel ) हो। यह महिलाएं जंगल मे भी खुद हि जाती है । जंगल में, जंगली जानवरों का डेरा रहकर भी यह महीलाए बिना डरे वहां से लकडिया जमा करती हैं। इन लकडियों का उपयोग रात को चुला जलाने के लिये होता है।इससे यह साबित होता है कि वे कितनी धाडसी हैं। उनके लिये पशु, पेड-पौधे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पशु का उपयोग वह अपने रोज कि ज़िंदगी मे करते है। ज्यादा तर वे महिलाए निसर्ग से मिलने वाली सभी सब्जियों को खाते है और बच्चों को भी खिलातें है। उनका मानना है की, जीतनी भी जरूरतें है वो कुदरत से मिलाती हुई चीजों से पूरा करें। ताकी किसी चीज़ के लिए शहर जाने की जरूरत ना हो।
                       वहां के  पुरूष घर ठीक से ना चलने पर, गुजारा ना होने पर, नौकरी की तलाश में शहर जाते हैं। और फिर घर का सारा बोझ यह महिलाएं उठाती है। इनका और विकास का ज्यादा संबंध नहीं फिर भी वह हमेशा खुश रहते है। बच्चे स्कुल जातें है, स्कुल से आने के बाद वह  घर के काम में हाथ बाँटते है। फिर सभी महिलाएं काम करने के बाद साथ में बैठकर गाना गाती है।
                    इस documentary को देखते ही गाँव की याद आ जाती है। चूल्हे पर बनाया हुआ खाना। आधुनिक साधनो को भूलकर, कुदरत से दोस्ती करना। सभी लोगों का मेलजोल और सभी का खुश रहना। यहाँ पर प्रेम, आदर, बंधुभाव इन सभी चीज़ों का दर्शन हो जाता है। शहर के लोग सारी सुविधा पाकर भी खुश नहीं रह पातें लेकिन यह लोग विकास से बहुत दूर होकर भी खुश रहते है, सचमुच हमें इनसे बहुत कुछ सिखाना चाहिए।
          ऐसी है, इनकी ज़िन्दगी ना किसी चीज़ की चाह, ना किसी चीज़ की तक्रार बस अपना काम करना, मिलजुलकर रहना, और जो कुछ मिले उसमें ही अपना सुख ढूंढना। सचमुच यह महिलाएं पहाड़ जैसी है। जिस तरह पहाड़, आंधी हो या तुफ़ान उसका डटकर कर सामना करता है। उसी तरह यह महिलाएं कितने भी संकट आ जावे बस पहाड़ जैसी, मजबुती की तरह उसका मुकाबला करती है। और आने वाले संकटों बिना डरें सामना करती हैं। शायद इसिलीए इन्हे पहाड़न कहां गया है।


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actuality  ( कमरे की खामोशी..... )                

                actuality  ( जगह का विवरण करना )                                                                      कमरे की खामोशी........