Documentary के पहलू :- १३ जनवरी २०१८
आज शनिवार फिल्ममेकिंग का पहला दिन।
काफी Exited था , क्या होगा- कैसे होगा, Studio होगा कि और कुछ। मन मे ऐसे कई सवाल उछल - कुद मचा रहे थे।
वैसे तो क्लास हमारा बेलापुर (New Bombay) में था। मै और मेरे सारे दोस्त हम सभी फिल्ममेकिंग के workshop में पहुंच गए। Workshop का समय १० बजे था हम समय से पहले पहुंच गए।
Workshopp पहुंचने पर वहां पर निकिता लोबो, जो हमारे co-ordinator थे, उनसे मुलाकात हुई। उसके बाद हमारी मुलाकात तन्मय अगरवाल सर से हुई। सर को देखा तो लगा कि वोे हंसी मजकवाले हैं पर नहीं थोड़े strict थे। क्योंकि आते ही उन्होंने सभी लोगों को मोबाईल मे से सिम बाहर निकालने को कहा और ये सिम कार्ड तब तक बाहर निकालना नहीं चाहिए जब तक Workshop का पैकअप ना हो। बस इसमें ही समझ गया कि सर किस तरह के आदमी हैं। हम उन मिलाकर १० लोग थे। आगे जाकर हम सभी का एक छोटासा introduction लिया। एक लड़के को छोड़कर, हम सभी एक दूसरे को जानते थे हम अपने बगल वाले का नाम और उसकी खूबियों के बारे में बताएंगे, पर मुझे तो पुछा ही नहीं शायद इसलिए क्योंकि जो नया लड़का था, उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता था। फिर उसके बाद हम workshop क्यों आएं ? क्या सोच कर आएं ? किस चीज में career बनाना हैं ? ऐसे कुछ सवाल हमसे पूछे गए। मुझे video editing अच्छा लगता हैं और उसका थोड़ा बहुत knowledge भी हैं, बस एक professional editing कैसे होती है , ये सीखना था। तो मैंने बता दिया कि मुझे video editing में career करना है।
अब हमारा Workshop शुरू हो गया। फिर विषय निकाला चाय का। सर भी चाय के शौकीन थे क्योंकि मुझे लगता है कि इस फ़ील्ड में जितने भी लोग हैं, वो चाय के दीवाने हैं। सर ने हमें एक successful गुरुमंत्र दिया। उन्होंने कहा की, इस फील्ड में अगर कुछ अच्छा करना है तो अच्छी चाय बनानी आनी चाहिए अगर नहीं आती तो जीवन में कुछ नहीं कर पाओगे। फिर क्या हम मे से एक ने चाय बनाई, उसे बनाने आती नहीं थी, फिर उसने एक लड़की की मदत ली और चाय बनाना सीख लिया। उसके बाद हम पर कुछ नियम लागू कर दिए।
1. ये कोर्स हम करना चाहते है। इसका नतीजा जो भी होगा वो हम भुगतने के लिये तैयार है।
2. आने के बाद मोबाइल बंद। 10 बजे से पहिले क्लास आना है। जो टाईम पर नाही आयेगा वो घर चला जायेगा। और उसके साथ बाकियों को भी जाना होगा। जो absent रहेगा वो next workshop से आएगा नहीं अगर कुछ काम होगा तो पहले ही बोलना होगा।
3. काम चोरी और टाईम पास नाही चलेगा, जरा भी दिखा तो workshop से बाहर।
4. और सभी लोगों की जिम्मेदारी भी खुद को ही लेनी होगी।
इससे मालूम होता हैं कि फिल्ममेकिंग यह अकेले नहीं बल्कि सभी लोगों के साथ होती हैं क्योंकि अगर एक से भी गलती हुई तो, भुगतना सबको पड़ता हैं। अगर कोई ब्रेक लेता हैं, तो सभी ब्रेक लेंगे।
5. और आखिर blog लिखना। यह सभी को अनिवार्य होगा।
तो ये था हमारे workshop का पहला पड़ाव।
दूसरे पड़ाव मे हमने डॉक्यूमेंट्री फिल्म, डेली सोप और नॉर्मल फिल्म पर चर्चा की,
डॉक्यूमेंट्री फिल्म- यानी वृत्त चित्र जिसमें कहानी भी होती है, लेकीन मन घड़न कहानी नहीं होती
डेली सोप- उसमे dialogue की रिहर्सल होती है।
उसके बाद fiction or non- fiction पर चर्चा की,
fiction यानी एक कहानी ।
fiction वो जिसमें सब कुछ फिक्स हो याने अपने मन की कहानी और non- fiction जिसमें कोई फिक्स नहीं होता जिसमें अपने मन की कहानी फिक्स नहीं होती।
तीसरे पड़ाव में हमने camera हैंडलिंग किया। सर ने हमने camera हैंडल कैसे करते हैं, उसमे कौन-कौन सी चीजें जरूरी होती है और उसमें कौन कौन से बटन क्या काम करते हे य बताया।
जिसमें एक Auto focus , mannual focus, view finder , diopter ring, TV (Time value) , AV (Aparture value या फीर IRIS कहते हैं ) और focus कैसे किया जाता हैं उसके बारे में बताया।
Diopter ring के बारे में मुझे पता नहीं था। Diopter रिंग कैमरा के display के ऊपर गोल और काफी छोटिसी होती है। सर ने कहां की view finder में देखकर diopter रिंग को घुमाइए। घुमाते हुए view finder में कुछ ब्लैक कलर के डॉट्स दिखाई देंगे, वो धीरे धीरे क्लियर दिखाई देंगे। जैसे ही हमें क्लियर दिखाई देते हैं, समझो हमने फोकस कर लिया है view finder में। सर ने और सीधे तरीके स बताया कि मानो view finder एक चश्मा है, और diopter रिंग की मदत से हम अपने चश्मे को एडजस्ट कर सकते है।
फोटो निकालने के लिए शुरुवात में TV 1/50 रखना और ISO, लाइट्स के हिसाब से (ज्यादा lights होनेपर दिन में- १००, शाम को - ८०० और रात को ६४०० या उससे आगे ) Adjust करना सिखाया। फिर एक अच्छी फोटो कैसे क्लिक की जाती हैं वो हमने प्रैक्टिकल किया। सभी ने अच्छी अच्छी फोटो ली।
उसके बाद हमने वीडियो लेना सिखा। सर ने कैमरा लिया और एक लड़के का तेज़ चलते हुए एक वीडियो लिया। वो थोड़ा blur शूट हुआ लेकिन बाद में सर ने कैमरा में सेटिंग की और फिर एक लड़की का चलते हुए वीडियो ले लिया वो काफी क्लियर आया। पूछने पर सर ने बताया कि, वीडियो की की क्वालिटी चेक करने के लिए camera TV पर सेट करें और फोटो क्लिक करें उसके बाद ISO सेट करें और फिरसे TV पर सेट करें और फोटो क्लिक करें
फिर फोटो का ट्रायल होने के बाद हम वीडियो ले सकते हैं।
सर के कहने पर हमने वीडियो लेना शुरु किया। उनके आदेशानुसार वीडियो में Start -Middle - End इन सबका मिश्रण होना चाहिए।
सभी ने अपने अपने हिसाब से वीडियो लिया मैंने एक छोटे से पौधे का नीचे से ऊपर तक tilt shot लिया। उसके बाद हमने दिमाग को ताज़ा करने के लिए चाय का स्वाद लिया। चाय उसी लड़के ने बनाई ,लेकिन चाय का स्वाद पहले से दस गुना अच्छा था।
चौथे पड़ाव में हमने कैमरे में जितने भी footage लिए थे वो सारे हमने लैपटॉप पर देखें। फोटो और वीडियो के बारे में चर्चा की Normal फोटो और camera से ली गई फोटो में फर्क था। AV और ISO का महत्व भी अच्छे से समझ में आ गया। ( ( AV में हम फोटो की ब्राइटनेस को कंट्रोल कर सकते हैं और ISO में हम दिन के हिसाब से रात के हिसाब कलर balance कर सकते है ) वहां पर फोटोग्राफ में मैंने Rule of third के बारे में जाना।
सर ने एक task दिया ,जब next workshop याने अगले शनिवार को वीडियो के 5 shots लेने हैं, जिसमें Start -Middle - End होना चाहीए वो भी कैमरा के जरिएं और ऑनलाइन ब्लॉग लिखने कहां।
तो इस तरह workshop का पहला दिन था। सर का पढ़ाने का तरीका थोड़ा अलग था। सर को अगर सवाल किया तो सर हमसे ही सवाल पूछकर जवाब निकाल लेते थे। थोड़े बहुत स्ट्रिक्ट हैं लेकिन किसी चीज़ के बारे में बताते तो उसे अच्छे से समझाते।