Tuesday 30 January 2018

# वृत्तचित्र के रहस्य - दिन 3 #

Recording session

आज की workshop में हमें और एक बार Blog लिखने की सीख दी। मतलब कि, ब्लॉग में content होना बहुत जरूरी है। Blog में हर चीज़ का कनेक्शन होना चाहिए। उसमे निष्कर्ष, value, संदर्भ होना चाहिए।
हमारा काफी समय blog को ठीक बनाने में गया।
फिर "में और मै"इस फिल्म को हमने एक लैपटॉप पर दिखाया। किसी ने travel और शॉपिंग का बनाया, किसी ने अपना close up लेकर अपने बारे में बताया। मैने उसमे traveling बताया फिल्म पूरी तरह से mute थी। फिर उसपर हमने चर्चा की। फिर यह अनुमान लगाया गया कि, फिल्म में अगर कोई कृति हो और फिर उस कृति को करते हुए अपने बारे में बताओगे तो अच्छा होगा। जैसे कि मानो की किसी एक लड़के को किसी का रोना देखा नहीं जाता। तो वह लड़का उस रोते हुए इंसान की मदत करते हुए अपनी बात बता सकता है, या फिर background में अपनी आवाज़ देकर उसने उसकी किस, तरह मदत की वैसे बता सकता है।
आगे जाकर हमने एक विषय पर चर्चा की। मानो अगर एक ATM है, और उसका वॉचमैन जगह पर नहीं, तो हम उसे कैसे बताएं?
इस पर चर्चा करने के बाद हमने पाया कि, हम वॉचमैन की खाली कुर्सी पर उसकी टोपी - या उसका डंडा दिखाएंगे तो कोई भी समझेगा की वॉचमैन अपनी जगह छोड़कर यहां वहां भटक रहा हैं। मैने तो कई बार ऐसा भी देखा हे की, वॉचमैन की कुर्सी पर कई बार कुत्ता सोया हुआ रहता हैं। यह मै बताने वाला था, लेकिन गंभीर विषय मजाक के मोड़ पर चला जाता इसीलिए में कुछ नहीं बोला।
                        आगे जाकर हमने रिकॉर्डर के बारे में जाना। उसका नाम Zoom handy recorder। उस recorder में मैने जाना कि, view meter क्या होता है। View meter उसे कहते है जिसमें आवाज का level दिखाया जाता है उसमें हम आवाज की सेंटीग भी देख सकते है। आवाज़ का लेवल -12 के पास हो तो वह परफेक्ट वेल्युम कहा जाता है। Input button से हम आवाज की level को सेट कर सकते है। हमें हमेशा mannual पर रखना चाहिए, क्योंकि इसमें पूरा कंट्रोल हमारे हाथ में रहता है। जैसे कि हम sound के level को atmosphere के हिसाब से control कर सकते है ( अगर हवा आ रही है, तो उसे input level से adjust करना। हवा चल रही होगी तो जो बातें कर  रहा होगा उसके पास उस recorder ले जाना चाहिए। )
recorder दो थे, और हम ६ लोग। तो ३-३ लोगों में एक recorder दिया और हमने practically आजमाके देखा।
उसमे हमने चलने की, बातों की, किसी चीज की आवाज़ रिकॉर्डिंग की। जब हम technical रूम में गए तो यकीन मानिए हम नॉर्मल फोन से रिकॉर्ड करते है, उस रिकॉर्डिंग में और इस रिकॉर्डिंग में काफी फर्क था। इसमें हमने आवाज़ को काफी साफ और अच्छे से सुना।
दूसरे ग्रुप हम ने रिकॉर्डिंग auto level पर की तो आवाज बिच में कम ज्यादा हो रही थीं। याने कि हवा की आवाज़ बीच में ज्यादा हो रही थी तो आदमी कम, तो कभी आदमी की ज्यादा तो हवा की कम। मतलब कि आवाज़ ऊपर नीचे हो रही थी। और हम ने input level को - 12 के भी,नीचे किया तो आवाज़ काफी धीमी आ रही थीं। तो हमेशा view meter देख कर आवाज़ को रिकॉर्ड करना चाहिए।
तो यह था recording session।

Saturday 20 January 2018

# वृत्तचित्र के रहस्य - दिन २ #


Actuality ( विवरण ) :-
               हम सभी बेलापुर स्टेशन पर मिले। कुछ लोग रिक्षा से निकले और कुछ चलते हुए। सर ने जो 5 वीडियो शॉट्स का टास्क दिया था बस उसमे से एक ही लेना बाकी था। सोचा चलते चलते कोई अच्छा शॉट मिलेगा इसलिए में चलते हुए आ रहा था। हम सभी वक्त से पहले पहुंचे गए और मैने मेरा टास्क भी complete किया। और तन्मय सर के कहने पर हम सभी लोग ऊपर, याने बंगले के पहले मंजिल पर पहुंचे। मेरे ख्याल से वो technical रूम है, क्योंकि लास्ट टाइम भी हमने वहां पर फोटो और वीडियो देखें। और इस बार हम सभी का blog देखा। जाएगा। क्योंकि हम मे से एक वहां ओपन करके रख था (प्रसाद कामतेकर)। वो देख कर मन मे घबराहट सी हुई कि blog मे जरूर mistake हुई होगी और सभी की class ली जाएगी।
आज हमारे बीच दो नए स्टूडेंट्स आए observation के लिए याने की वो भी हमारे टीम का एक हिस्सा थे। आने के बाद उन्होंने अपना introduction दिया और सर के जो नियम/शर्तें थी वो फिरसे दोहराई
१) समय पर आना। अगर नही आया तो workshop से बाहर।
२) mobile पूरी तरह स बंद। ( सिम कार्ड बाहर)
३) एक ने break लिया तो वो सभी का होगा।
४) सामुहिक ज़िम्मेदारियां- याने कि जो काम दिया है उसे सभी ने पूरा करना चाहिए अगर एक का भी नहीं हुआ तो बाकियों ने उसे मदत करनी चाहिए वरना वर्कशॉप का topic आगे नहीं बढ़ेगा।
५) ब्लॉग- जो कि सभी को Compulsory होगा
           तो यह सभी शर्तें फिरसे दोहराई उन नए स्टूडेंट्स के लिए।
फिर ब्लॉग जिन लोगो ने देरी स post किए थे उन्हें खड़ा किया गया  वो तीन लोग थे। सभी के अपने अपने reason थे।
एक ने कहा कि उस कुछ समझ नहीं आया, क्या लिखु?, कैसे लिखु? , दूसरे ने कहां की technical issue था, याने उसका ब्लॉग post ही नहीं हो रहा था। और तीसरे न कहा कि, वो लेट समझता है और वो सभी के blog पढ़ने के बाद ही post करना चाहता था।
फिर क्या सर न उनकी अच्छे से class ली। लेकिन हमारा समय बर्बाद हो रहा था। और हम ४ नंबर की शर्त को पूरा कर ना पाए। सर ने उन्हें और हम सभी को  भी एक मौका दिया जबकि आगे अगर ऐसा हुआ किसी से भी, तो वो बाहर जाएगा। ऐसा हम सभी ने कहा। लेकिन सर जब उन तीनों को की class ले रहे थे मतलब हम सभी की की class ले रहे थे, तभी मुझे बहुत स बाते समझ आयी जैसे कि google input, और हम blog के अंदर ही किसी भी भाषा में लिख सकते हैं। हमे एक कहानी भी बताई जो की तन्मय सर के साथ हकीकत मे हुई थी जिसमें एक well educated आदमी और एक सीधा आदमी होता है सर जब train स उतर रहे होते तो उस educated इंसान ने मदत की जबकि दूसरे ने सामान देख कर मुंह मोड़ लिया। इससे हमें जो सीख मिलनी थी वो हमें मिली। इसके अलावा कैमरा की safety रिबन जो गले मे दाली जाती हे उस safety starff कहते हैं। और सभी लोगों के blog का  title 'वृत्तचित्र के रहस्य' यह एक ही नाम रहेगा। वो इसीलिए ताकि नाम पढ़ते ही सबका ध्यान खींचा चला जाएं। और फिर मैंने film making से वृत्तचित्र रहस्य' नामकरण कर दिया। फिर हमे छोटे pad दिए वो इसलिए कि हम किसी चीज के बारे में विस्तार में लिख सके।और आगे जाकर हमारी workshop शुरू हो गई।
                 सर ने एक छोटासा task दिया कि (१०.३० से लेकर १२.४५ मिनट में)  जो कुछ कहा, जो कुछ हुआ वह सभी चीजों को १० मिनट में अपने pad मे लिखों। और सभी का लिखकर हुआ तो एक से पूछा गया और उस पर टिप्पणी हम सभी ने की।
(workshop में दो स्टूडेंट के एंट्री होने से लेकर pad देने तक)
आगे जाकर हमें एक फिल्म दिखाई, उसका नाम zoo है।
Zoo film-
यह एक black and white short film है
यह एक mind-blowing  फिल्म है। इस फिल्म को काफी नवाज़ा गया है। इस फिल्म से मालुम होता है कि, इंसान की और जानवरों की काफी छबियां एक दूसरे से मिलती जुलती है। जैसे कि चलने का ढंग, जैसे इंसान शर्माता है वैसे जानवर भी शर्माता है, जैसे इंसान उबासी लेता वैसे ही जानवर भी लेता है। जैसे कपड़ो का और जेब्रा के पट्टों का मैचिंग। ऐसे बहुत सी चीजें हैं उस फिल्म में। फिल्म देखने के लिए। Film Zoo


यह फिल्म मैने पहले भी देखी हैं, फिल्म zoo से मेरा ये निष्कर्ष निकलता है की,
इंसान और जानवर दोनों भी एक दूसरे के लिए अनजान है।
और दोनों भी एक दूसरे को पिंजरे के उस पार देख रहे थे, दोनों ही सलाखों के उस पार है।
फिर फिल्म मे जो कुछ ख़ास था उसके बारे मे चर्चा की, फिल्म की खासियत, फिल्म की वास्तविकता। इस फिल्म मे मैने सिखा की फिल्म में निरीक्षण और परीक्षण अच्छा था। याने सभी चीज़ों को जानवरों की आदतो को और इंसान की आदतों को, काफी बारकाई से दिखाया गया था। कपड़ों से लेकर उनकी हर हरकत को एक साथ मिलाया था और इसीलिए यह फिल्म आज भी उतनी ही शानदार है जितनी पहले थी। इस फिल्म में आवाज़ भी हैं लेकिन कुछ तकनीकी खराबी की वजह से हमें वो silently देखनी पड़ी।
Silently देखी तो boring सी लगी। फिर उसमे हम कुछ नया सीखें जैसे कि,
१) फिल्म वो हे जहां हम लोगोें को नई दुनिया में लेकर जातें हैं।
२) फिल्म में कुछ नया दिखाओ, कुछ अलग दीखाओ।
३) फिल्म में संग्रह सही तरीके से करो और उसे सही से जोड़ों।
         यह फिल्म एक pure Documentary film हैं। फिल्म में सारा natural शूट दिखाया गया है। फिल्म में Actual जो भी हो रहा है, उसका वर्णन किया है। फिर चर्चा हुई actuality पर। Actuality याने जो भी है,  जैसा भी है उसका वर्णन। अपने इंद्रियों से आस पास के अनुभव को महसूस करना उसे actuality कहते है। सर ने विवरण नाम के शब्द का जिक्र किया। वो शब्द मेरे लिए नया था। विवरण करना, याने किसी चीज का वर्णन करना। इसमें चीज़ों का सही तरीके से विवरण करना पड़ता है। जो भी है - जैसा भी है, positive है या negative है, अच्छा है या बुरा है। इन सभी का वर्णन करना। फिर हमने एक छोटा लंच ब्रेक लिया। लंच के बाद हमें सर ने बंगले के आंगन में इक्कठा किया। फिर हमें एक actuality का task दिया। टास्क यह था की, हमें आस पास की चीज़ों के बारे में लिखना है। अगर कोई दिखा तो उससे बिना बोले चुपचाप अपना काम करना है। हमे आधे घंटे का समय दिया। सभी को अलग अलग जगह भेजा गया। मुझे सड़क के किनारे भेज दिया और में वहा जो कुछ हो रहा था, जो कुछ महसूस कर रहा था वो सबकुछ में अपने pocket डायरी मे point to point लिख रहा था। सर वह अपना 360 camara लेकर जो स्टूडेंट जहा जहा खड़ा हे उसका रिकॉर्डिंग ले रहे थे। उसके बाद सर के बुलाने पर हम सारे इकट्ठा हुए और जो point लिखे है उनका अब वाक्य में रूपांतरण करना है। यह करने के लिए हम सभी को एक ही जगह पर भेजा गया। हम सभी लोग बंगले के सामने वाले गार्डन में गए। गार्डन में हम सारे points का विस्तार करने लगे। लिखते लिखते सर गार्डन में आए। सर ने मेरी हैंडराइटिंग देखी और उन्होंने कहा भी कि हैंडराइटिंग अच्छी है। मैने thank you कहा और सर वहा से चले गए। मैं अपना काम करने लगा। इतने में चाय आयी। हम सभी ने चाय का स्वाद चखा। चाय के साथ good day भी लाए गए जो मुझे काफी पसंद है। मैने दो biscuit खाएँ और फिरसे point को विस्तार में लिखने लगा। इतने में सर आगए, सारे लोग मुझे बोल रहे थे बस कर बस कर लेकिन सर ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराकर कहने लगे ' लिखने दो उसे, अच्छा लगता है मुझे कोई काम करें। यह सुनकर मै लिखते ही जा रहा था। लिखने के बाद हम सभी को एक circle में बैठने कहा। बिच में ट्राइपॉड रखा और अपना ३६० कैमरा चालू किया। फिर उन्होंने मेरे बगल में बैठे हुए लड़के से जो वाक्य बनाए थे, उसे पढ़ने के लिए कहा। उसने भी अच्छा लिखा था, उसने ज्यादा वास्तु पर ध्यान दिया और उसने उसका अनुभव काफी कम लिखा था। फिर मेरी बारी आई मैने भी अपने अनुभव बताया, घटित घटनाएं बताई। फिर सर ने बाकी लोग से पूछा कि दोनों में किस का अच्छा था, तो सभी ने मेरे तरफ इशारा किया। क्योंकि मैने इसमें अपने अनुभव लिखे थे, जबकि उसने वास्तु का के बारे में बताया। मेरे बाद वाले लड़के का लगभग मेरे जैसा ही था। उसने भी अपने अनुभव, देखी हुई घटनाएं बताई। फिर आगे एक एक करके सभी ने अपना विवरण ( actuality) सुनाया। एक ने तो कहा कि उसने वहां पर सांप देखा। सबका पेश करने का तरीका अलग था। जिस लड़के को (आदेश) शुरवात में ब्लॉग लेट पोस्ट करने पर डांटा था। वो लड़का पूरी तरह खुल गया। मस्ती के मूड में आया था क्योंकि उसने अपना विवरण, अपने तरीके से बताया था। फिर इस पर चर्चा की। सारें विचारों को हम जोड़ते है, तो उसमे एक value होती है। अगर बातों में value हो तो ही उसे लिखें। विवरण में ( actuality) विशेषण का कोई महत्व नहीं होता, बस जो है वैसा ही हमे दिखाना है। इसे और खूबसूरत बनाना है तो, इसमें खुद का imagination डाले, तो मानो विवरण में जादूई रस उतर जाएगा।सर ने कहा कि जो सामने हो रहा है, या फिर किसी चीज को लेकर उसकी back story बना सकते है।
                  आज भी नया मंत्र बताया देखो- चूसो- उबलो। याने कि जो दिखता है, उसे अपने अंदर समा लो फिर उसे आगे जाकर दूसरों को बताओं। विवरण सबके अलग अलग थे, लेकिन कुछ कुछ लोगों का अनुभव एक जैसा था। अगर हम दो घटनाएं एक साथ जोड़ देते है, तो कहानी और भी दमदार हो जाती है। विवरण कोई भी कर सकता है, बस आसपास के चीजों ध्यान से देखो, सुनो। अपनी इंद्रियों को खुला रखो। जमीन पर पड़े पत्थर की खामोशी भी हमे नजर आएगी। बस अपने दिमाग को खुला रखों।
सर ने और एक जगह का विवरण करने को कहा, और ब्लॉग में पोस्ट करने को कहा।
इसके अलावा 5 शोट्स, खुद की एक फिल्म बनाने को कहा। ( याने अंदर की अच्छाईयां, और बुराईयां दोनों भी बतानी है )
फिर पहले वाले ब्लॉग को थोड़ा edit करके फिरसे पोस्ट करने को कहा।
टिप-
Actuality का वर्णन जो workshop मे बताया था, वो आगे के ब्लॉग है। ( जगह का विवरण करना )

Tuesday 16 January 2018

# वृत्तचित्र के रहस्य - दिन १ #

Documentary के पहलू :-                                 १३ जनवरी २०१८


आज शनिवार फिल्ममेकिंग का पहला दिन।
काफी Exited था , क्या होगा- कैसे होगा, Studio होगा कि और कुछ। मन मे ऐसे  कई सवाल उछल - कुद मचा रहे थे।
वैसे तो क्लास हमारा बेलापुर (New Bombay) में था। मै और मेरे सारे दोस्त हम सभी फिल्ममेकिंग के workshop में पहुंच गए। Workshop का समय १० बजे था हम समय से पहले पहुंच गए।
              Workshopp पहुंचने पर वहां पर निकिता लोबो, जो हमारे co-ordinator थे, उनसे मुलाकात हुई। उसके बाद हमारी मुलाकात तन्मय अगरवाल सर से हुई। सर को देखा तो लगा कि वोे हंसी मजकवाले हैं पर नहीं थोड़े strict थे। क्योंकि आते ही उन्होंने सभी लोगों को मोबाईल मे से सिम बाहर निकालने को कहा और ये सिम कार्ड तब तक बाहर निकालना नहीं चाहिए जब तक Workshop का पैकअप ना हो। बस इसमें ही समझ गया कि सर किस तरह के आदमी हैं। हम उन मिलाकर १० लोग थे। आगे जाकर हम सभी का एक छोटासा introduction लिया। एक लड़के को छोड़कर, हम सभी एक दूसरे को जानते थे हम अपने बगल वाले का नाम और उसकी खूबियों के बारे में बताएंगे, पर मुझे तो पुछा ही नहीं शायद इसलिए क्योंकि जो नया लड़का था, उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता था। फिर उसके बाद हम workshop क्यों आएं ? क्या सोच कर आएं ? किस चीज में career बनाना हैं ? ऐसे कुछ सवाल हमसे पूछे गए। मुझे video editing अच्छा लगता हैं और उसका थोड़ा बहुत knowledge भी हैं, बस एक professional editing कैसे होती है , ये सीखना था। तो मैंने बता दिया कि मुझे video editing में career करना है।
                 अब हमारा Workshop शुरू हो गया। फिर विषय निकाला चाय का। सर भी चाय के शौकीन थे क्योंकि मुझे लगता है कि इस फ़ील्ड में जितने भी लोग हैं, वो चाय के दीवाने हैं। सर ने हमें एक successful गुरुमंत्र दिया। उन्होंने कहा की, इस फील्ड में अगर कुछ अच्छा करना है तो अच्छी चाय बनानी आनी चाहिए अगर नहीं आती तो जीवन में कुछ नहीं कर पाओगे। फिर क्या हम मे से एक ने चाय बनाई, उसे बनाने आती नहीं थी, फिर उसने एक लड़की की मदत ली और चाय बनाना सीख लिया। उसके बाद हम पर कुछ नियम लागू कर दिए।
1. ये कोर्स हम करना चाहते है। इसका नतीजा जो भी होगा वो हम भुगतने के लिये तैयार है।
2. आने के बाद मोबाइल बंद। 10 बजे से पहिले क्लास आना है। जो टाईम पर नाही आयेगा वो घर चला जायेगा। और उसके साथ बाकियों को भी जाना होगा। जो absent रहेगा वो next workshop से आएगा नहीं अगर कुछ काम होगा तो पहले ही बोलना होगा।
3. काम चोरी और टाईम पास नाही चलेगा, जरा भी दिखा तो workshop से बाहर।
4. और सभी लोगों की जिम्मेदारी भी खुद को ही लेनी होगी।
 इससे मालूम होता हैं कि फिल्ममेकिंग यह अकेले नहीं बल्कि सभी लोगों के साथ होती हैं क्योंकि अगर एक से भी गलती हुई तो, भुगतना सबको पड़ता हैं। अगर कोई ब्रेक लेता हैं, तो सभी ब्रेक लेंगे।
5. और आखिर  blog लिखना। यह सभी को अनिवार्य होगा।
तो ये था हमारे workshop का पहला पड़ाव।
          दूसरे पड़ाव मे हमने डॉक्यूमेंट्री फिल्म, डेली सोप और नॉर्मल फिल्म पर चर्चा की,
डॉक्यूमेंट्री फिल्म- यानी वृत्त चित्र जिसमें कहानी भी होती है, लेकीन मन घड़न कहानी नहीं होती
डेली सोप- उसमे  dialogue की रिहर्सल होती है।
उसके बाद fiction or non- fiction पर चर्चा की,
fiction यानी एक कहानी ।
fiction वो जिसमें सब कुछ फिक्स हो याने अपने मन की कहानी और non- fiction जिसमें कोई फिक्स नहीं होता जिसमें अपने मन की कहानी फिक्स नहीं होती।
           तीसरे पड़ाव में हमने camera हैंडलिंग किया। सर ने हमने camera हैंडल कैसे करते हैं, उसमे कौन-कौन सी चीजें जरूरी होती है और उसमें कौन कौन से बटन क्या काम करते हे य बताया।
जिसमें एक Auto focus , mannual focus, view finder , diopter ring, TV (Time value) , AV (Aparture value या फीर  IRIS कहते हैं ) और focus कैसे किया जाता हैं उसके बारे में बताया।
Diopter ring के बारे में मुझे पता नहीं था। Diopter रिंग कैमरा के display के ऊपर गोल और काफी छोटिसी होती है। सर ने कहां की view finder में देखकर diopter रिंग को घुमाइए। घुमाते हुए view finder में कुछ ब्लैक कलर के डॉट्स दिखाई देंगे, वो धीरे धीरे क्लियर दिखाई देंगे। जैसे ही हमें क्लियर दिखाई देते हैं, समझो हमने फोकस कर लिया है view finder में। सर ने और सीधे तरीके स बताया कि मानो view finder एक चश्मा है, और diopter रिंग की मदत से हम अपने चश्मे को एडजस्ट कर सकते है।
फोटो निकालने के लिए शुरुवात में TV 1/50 रखना और ISO, लाइट्स के हिसाब से (ज्यादा lights होनेपर दिन में- १००, शाम को - ८०० और रात को ६४०० या उससे आगे ) Adjust करना सिखाया। फिर एक अच्छी फोटो कैसे क्लिक की जाती हैं वो हमने प्रैक्टिकल किया। सभी ने अच्छी अच्छी फोटो ली।
उसके बाद हमने वीडियो लेना सिखा। सर ने कैमरा लिया और एक लड़के का तेज़ चलते हुए एक वीडियो लिया। वो थोड़ा blur शूट हुआ लेकिन बाद में सर ने कैमरा में सेटिंग की और फिर एक लड़की का चलते हुए वीडियो ले लिया वो काफी क्लियर आया। पूछने पर सर ने बताया कि, वीडियो की की क्वालिटी चेक करने के लिए camera TV पर सेट करें और फोटो क्लिक करें उसके बाद ISO  सेट करें और फिरसे TV पर सेट करें और फोटो क्लिक करें
फिर फोटो का ट्रायल होने के बाद हम वीडियो ले सकते हैं।
सर के कहने पर हमने वीडियो लेना शुरु किया। उनके आदेशानुसार वीडियो में Start -Middle - End इन सबका मिश्रण होना चाहिए।
सभी ने अपने अपने हिसाब से वीडियो लिया मैंने एक छोटे से पौधे का नीचे से ऊपर तक tilt shot लिया। उसके बाद हमने दिमाग को ताज़ा करने के लिए चाय का स्वाद लिया। चाय उसी लड़के ने बनाई ,लेकिन चाय का स्वाद पहले से दस गुना अच्छा था।
             चौथे पड़ाव में हमने कैमरे में जितने भी footage लिए थे वो सारे हमने लैपटॉप पर देखें। फोटो और वीडियो के बारे में चर्चा की Normal फोटो और camera से ली गई फोटो में फर्क था। AV और ISO का महत्व भी अच्छे से समझ में आ गया। ( ( AV में हम फोटो की ब्राइटनेस को कंट्रोल कर सकते हैं और ISO में हम दिन के हिसाब से रात के हिसाब कलर balance कर सकते है ) वहां पर फोटोग्राफ में मैंने Rule of third के बारे में जाना।

           सर ने एक task दिया ,जब next workshop याने अगले शनिवार को वीडियो के 5 shots लेने हैं, जिसमें Start -Middle - End  होना चाहीए वो भी कैमरा के जरिएं और ऑनलाइन ब्लॉग लिखने कहां।
तो इस तरह workshop का पहला दिन था। सर का पढ़ाने का तरीका थोड़ा अलग था। सर को अगर सवाल किया तो सर हमसे ही सवाल पूछकर जवाब निकाल लेते थे। थोड़े बहुत स्ट्रिक्ट हैं लेकिन किसी चीज़ के बारे में बताते तो उसे अच्छे से समझाते।
             

actuality  ( कमरे की खामोशी..... )                

                actuality  ( जगह का विवरण करना )                                                                      कमरे की खामोशी........