Sunday 18 February 2018

# वृत्तचित्र के रहस्य 4 #

Documentary के ideas
            सबसे पहले तो हमे हमारा timetable बनाने को कहां। वो इसीलिए कि, हम हमारे Documentary के काम को ज्यादा से ज्यादा समय दे पाए ऐसा मुझे लगा । फिर हमारे जो टीचर तन्मय अगरवाल ( https://www.blogger.com/profile/07126207702039000875 ) उन्होने मुझे मेरी बनाई हुई फिल्म के बारे में पूछा शुरवात मे उन्हें अजीब से जवाब दिए। जैसे कि उन्होने कहां कि, इस फ्रेम में क्या दिखता है। मैने कहां मस्ती । जब कि विडिओ को pause किया और फिर पूछा कि अब क्या देखा तो फिर वही जवाब दिया जवाब सुनकर सर को हंसी आई। लेकीन फ्रेम मे दो लडके थे।
              फिर हम सब ने मिलकर वो फिल्म दोबारा देखी। फिल्म कि शुरवात मे जो तीन सीन हैं, उस पर गौर किया। फिर उन तीन सीन का, आपसी connection पूछा। उनका कोई भी connection नही था। क्योंकी सारे शॉर्ट randomly लिये थे, और उनमें कोई link नही थी। फिर हमने glass movie को देखा। जो कि Bert Haanstra के द्वारा निर्देशित कि गई है। 

                       
                         इस फिल्म कि commentary, मै कर रहा था। फिल्म के 2/3 सीन के बाद हमने उसके बारे में चर्चा कि, और सर ने हर सीन के बाद हमसे फिल्म के cut के बारे में पुछते रहें। फिल्म कि शुरवात में, हमने देखा कि orange colour के गोले यहां-वहां से घुम रहे थे। और आगे देखने पार मालुम होता है कि वह सब कांच गोले है। याने कि जब कांच द्रव अवस्था मे होता है तब वह वैसा दिखाई देता है। भट्टी में लोहे का पाईप डालकर उसको गोल गोल घुमाकर कांच के रस को उठाया जाता है। कांच के गोले को लोहे के पाईप से उठाकर, एक- एक आदमी उस खोकले पाईप में हवा भर कर फुला रहा था। फुलाने पर उसे थोडासा गुब्बारे जैसा आकार आया और तुरंत उसे एक साचे मे डाला गया। साचे मे डालने के बाद फिरसे उसमे हवा भरते थे, ताकि उसे अच्छे से उस साचे का आकर आजाए। वहाँ पर काम करने वाले कारीगर अपने काम में इतने निपुन थे की, एक आदमी ने अपने होठों से सिगरेट भी पी रहा है और पाईप में हवा भी भर रहा है। सभी कारीगर अपने अपने हिसाब अपना जलवा दिखा रहे थे। कोई बोतल बना रहा था, कोई डिश, कोई शो-पीस बना रहा था और कोई ट्रॉफी।
                     आगे जाने पर नया दृश्य दिखाई देता है।  यहाँ पर नया music आ जाता है जो हमारा ध्यान आकर्षित कर लेता है। हमे कारीगरों की जगह मशीने दिखाई पड़ती है। मशीन काफी तेज़ी से काम कर रही थी। बोतल मानो जैसे चींटिया एक कतार मे चलती हो वैसे चल रही थी। काफी तेज़ी से काम हो रहा था और तो और बोतलों को खुद मशीन गिनते जा रही थी। लेकिन आगे जाने पर गड़बड़ हुई और काफी नुकसान होने लगा। उस गड़बड़ को ठीक करने के लिए वहां के मजदूर को आगे आना पड़ा। इससे यह साबित होता है कि, मशीन कितना भी तेज़ि से काम कर ले, लेकिन अगर कुछ समस्या आई तो इंसान को ही आगे आना पड़ता है। क्योंकि मशीन को इन्सान ने बनाया है और जिस सावधानी से जिस लगन से इन्सान काम कर सकता है उस सूझबूझ से मशीन काम नहीं कर सकती।
                     आगे जाकर और एक बार मजदूरों की दुनिया दिखाई जाती है। इस बार मजदूरों के हात और music की ताल एक होकर अनोखा दृश्य दिखाई देता है। लेकिन इस बार मजदूरों का चेहरा दिखाया नही जाता। सिर्फ और सिर्फ उनका काम। जैसे की पाईप को गोल गोल घुमाना, उसे सहलाना फिर हवा भरकर उसे घूमाना आगे फिर मशीन और इन्सान को मिलाया। दोनो की क्षमता को दिखाया गया। मशीन की गति और इन्सान की गति को एक किया। इसके साथ ही एक मस्ती सी धुन को डाला गया। धुन में हॉर्न का भी आवाज़ है। उसे कारीगर जब उस पाईप मे हवा भरते है उससे मिलाकर काफी रोचकसा सीन बनाया। फिर अंत में एक बोतलों का दृश्य दिखाया गया। जहां पर यह documentary ख़त्म होती है।
                 इस फ़िल्म पर हमने चर्चा की, फ़िल्म काफी बढ़िया थी। क्योंकि इसमे shots को दोहराया नहीं था। उसका music भी उसे शोभा दे रहा था। और सबसे बड़ी बात तो इन्सान और मशीन का फर्क बताया गया। एक जगह पर बोतल अटक गई। जिसे मशीन द्वारा हटाना संभव नहीं था। एक मजदूर के हटाने पर काम फिरसे चालु हुआ। लेकिन जिस सरलता से जिज्ञासा से इन्सान काम करता है वैसा मशीन कर नहीं पाती। इन्सान वक्त ज्यादा लेता है पर काम को काफी बारकाई से और सूझबूझ के साथ करता है।
        फिर आगे जाकर एक ब्रेक और उसके बाद हमने documentary के अलग अलग ideas पर चर्चा की। जैसे की कोई पुलिस के उपर positive फ़िल्म बनाना चाहता है। कोई  चॉल में रहने वाले और बिल्डिंग में रहने वालों का फर्क बताना चाहता है।तो कोई लोकल ट्रेन पर ऐसे ऐसे अलग अलग विषय के बारे में बाते हो रही थी।



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                actuality  ( जगह का विवरण करना )                                                                      कमरे की खामोशी........